Monday 27 October 2014

हॉकिंग की नई चेतावनी




हॉकिंग की नई चेतावनी

नवभारत टाइम्स | Sep 9, 2014,

गॉड पार्टिकल की खोज के बाद सृष्टि का सबसे बुनियादी रहस्य जानने को लेकर पैदा हुई आशा चर्चित ब्रिटिश साइंटिस्ट स्टीफन हॉकिंग की ओर से आई चेतावनी के बाद आशंका में बदल सकती है। हॉकिंग ने जल्द ही प्रकाशित होने जा रही किताब 'स्टारमस' की भूमिका में कहा है कि गॉड पार्टिकल को लेकर जो प्रयोग किए जा रहे हैं, उनमें पूरे ब्रह्मांड को नष्ट कर देने की क्षमता है। हॉकिंग के मुताबिक गॉड पार्टिकल को अगर हाई टेंशन पर रखा जाए तो कैटस्ट्रॉफिक वैक्यूम डिके (अनर्थकारी शून्य ह्रास) पैदा हो सकता है। यानी इससे कुछ ऐसे बुलबुले तैयार हो सकते हैं, जिनके लपेटे में आकर पूरा ब्रह्मांड ही शून्य बन जाए। हॉकिंग की इस चेतावनी को फिलहाल सिद्धांत रूप में ही लिया जा रहा है, और इसको इसी तरह लिया भी जाना चाहिए। हॉकिंग ने भी कहा है कि जिस स्थिति की चेतावनी उन्होंने दी है, उसके निकट भविष्य में घटित होने के कोई आसार नहीं हैं। इन स्थितियों के लिए गॉड पार्टिकल को ऊर्जा के जिस स्तर पर रखना होगा, उसके लिए पृथ्वी से भी बड़े ऐक्सीलरेटर की जरूरत पड़ेगी। जाहिर है, मौजूदा हालात में स्टीफन के बताए खतरों से घबराने की जरूरत नहीं है। मगर, गॉड पार्टिकल की खोज के वक्त हम देख चुके हैं कि कैसे मीडिया का एक हिस्सा इसे ईश्वर की खोज बताने पर आमादा था। ऐसे में यह नामुमकिन नहीं कि हॉकिंग की चेतावनी का इस्तेमाल कुछ विज्ञान विरोधी ताकतें लोगों को बरगलाने में करने लगें। जब भी विज्ञान किसी बेहद महत्वपूर्ण खोज की दहलीज पर पहुंचता है, समाज का एक हिस्सा प्रकृति से छेड़छाड़ के कथित खतरों और नैतिकता के गढ़े हुए मानकों के सहारे उस पर अंकुश लगाने की कोशिश करता है। बहरहाल, हॉकिंग की यह एक महान उपलब्धि रही है कि उन्होंने भौतिकी की सीमावर्ती खोजों को आम लोगों के बीच लोकप्रिय बनाया है। उनकी 'अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम' की गिनती दुनिया की सबसे ज्यादा बिकने वाली नॉन फिक्शन पुस्तकों में होती है। उम्मीद करें कि उनकी लिखी प्रस्तावना के साथ आ रही यह किताब क्वांटम मेकेनिक्स में जारी नवीनतम काम को लोकप्रिय विमर्श का हिस्सा बनाएगी। 
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चेतावनीः हमें तबाह न कर दें गॉड पार्टिकल्स

नवभारत टाइम्स | Sep 8, 2014,

भौतिकी और ब्रह्मांड विज्ञान के मशहूर प्रफेसर स्टीफन हॉकिंग ने दुनिया को चेतावनी दी है कि जिस 'गॉड पार्टिकल्स' ने सृष्टि को स्वरूप और आकार दिया है, उसमें पूरी दुनिया को खत्म करने की भी क्षमता है। प्रफेसर हॉकिंग की संडे टाइम्स को दी इस रिपोर्ट ने विज्ञान जगत में खलबली मचा दी है। वैज्ञानिक इस विषय को लेकर काफी रोमांचित हैं। हॉकिंग का कहना है कि अगर वैज्ञानिक गॉड पार्टिकल्स को हाई टेंशन (उच्च तनाव) पर रखेंगे तो इनसे 'कैटास्ट्रॉफिक वैक्यूम' तैयार होगा। यानी इससे बुलबुलानुमा गैप तैयार होंगे। इससे ब्रह्मांड में गतिमान कण टूट-टूटकर उड़ने लगेंगे और आपस में टकराकर चूर-चूर हो जाएंगे। हालांकि भौतिकविदों ने इस मसले को आपदा की आशंका मानकर किसी तरह का प्रयोग नहीं किया है। लेकिन प्रफेसर हॉकिंग ने दुनिया के वैज्ञानिकों को सचेत जरूर किया है। सैद्धांतिक भौतिकीविदों ने हिग्स बॉसन के बारे में लिखा है कि उनकी नई किताब स्टारमस में नील आर्मस्ट्रॉन्ग, बज़ एलड्रीन, क्वीन गिटारिस्ट ब्रायन मे आदि के लेक्चर्स का चयन है। इसी साल नवंबर में यह किताब आने वाली है। इसमें भी गॉड पार्टिकल्स से जुड़ी जानकारियां होंगी। यूनिवर्स की हर चीज (तारे, ग्रह और हम भी) मैटर यानी पदार्थ से बनी है। मैटर अणु और परमाणुओं से बना है और मास वह फिजिकल प्रॉपर्टी है, जिससे इन कणों को ठोस रूप मिलता है। मास जब ग्रैविटी से गुजरता है, तो वह भार की शक्ल में भी मापा जा सकता है, लेकिन भार अपने आप में मास नहीं होता, क्योंकि ग्रैविटी कम-ज्यादा होने से वह बदल जाता है। मास आता कहां से आता है, इसे बताने के लिए फिजिक्स में जब इन तमाम कणों को एक सिस्टम में रखने की कोशिश की गई तो फॉर्म्युले में गैप दिखने लगे। इस गैप को भरने और मास की वजह बताने के लिए 1965 में पीटर हिग्स ने हिग्स बोसोन या गॉड पार्टिकल का आइडिया पेश किया।
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ब्रह्मांड  का अंत, तुरंत

14-09-14 06:

स्टीफन हॉकिंग हमारे दौर के सबसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक हैं और उनका कोई भी बयान चर्चित हो जाता है। हॉकिंग सैद्धांतिक भौतिकशास्त्री हैं और उन्हें अपने सैद्धांतिक ज्ञान के आधार पर ऐसी बातें करने में महारत हासिल है, जिसकी आम लोगों में भी चर्चा हो जाए। अपनी नई किताब स्टारमस की प्रस्तावना में उन्होंने लिखा है कि हिग्स-बोसोन या कथित गॉड पार्टिकल किसी भी क्षण दुनिया को नष्ट कर सकता है। हिग्स-बोसोन की परिकल्पना वैज्ञानिक पीटर हिग्स और उनके साथियों ने साठ के दशक के शुरू में की थी और सन 2012 में इसके अस्तित्व का प्रायोगिक साक्ष्य मिला। बहुत साल पहले हिग्स-बोसोन को एक वैज्ञानिक ने लगभग मजाक में गॉड पार्टिकल कह दिया था, क्योंकि परिकल्पना के मुताबिक वह दुनिया में हर कहीं है, लेकिन दिखता नहीं है, तब से उसका नाम ज्यादा चर्चित हो गया। हिग्स पार्टिकल दुनिया के अस्तित्व के लिए बहुत जरूरी है, क्योंकि यह तमाम सूक्ष्म कणों को भार प्रदान करना है। हॉकिंग के विचार को संक्षेप में और सरल ढंग से यूं समझा जा सकता है कि हिग्स-बोसोन पूरी दुनिया में समान रूप से व्याप्त है और इसका भार भी काफी ज्यादा है, यह प्रोटोन से 126 गुना ज्यादा भारी होता है। वैज्ञानिक सन 2012 में इसकी खोज के बहुत पहले से यह मानते थे कि इतने भारी कण के होने का अर्थ है कि अत्यंत निम्न ऊर्जा स्थितियों का भी अस्तित्व है। कोई भी चीज स्वाभाविक रूप से सबसे निचली स्थिति तक जाती है, जैसे अगर कोई गेंद पहाड़ी से लुढ़का दी जाए, तो वह सबसे निचली सतह पर जाकर रुकेगी। किसी भी व्यवस्था की प्रवृत्ति निम्नतम ऊर्जा स्थिति तक जाकर स्थिर होने की होती है। हिग्स-बोसोन और एक अन्य बुनियादी कण टॉय क्लार्क के संतुलन से यह ब्रह्मांड बना हुआ है। किसी वजह से यह संतुलन बिगड़ जाए, तो वह निम्नतम ऊर्जा स्तर पर पहुंच जाएगा और क्षण के एक छोटे-से हिस्से में पूरी तरह गायब हो जाएगा। यह प्रक्रिया कहीं एक जगह शुरू होगी और प्रकाश की गति से पूरे ब्रह्मांड में फैल जाएगी। सैद्धांतिक रूप से ऐसा हो सकता है। वैज्ञानिक नजरिये से ब्रह्मांड बना भी ऐसे ही एक सेकंड के कुछ अरबवें हिस्से में था। लेकिन इसकी आशंका कितनी है, यह सोचने की बात है। यह दुनिया तमाम किस्म की असंतुलित और अधूरी व्यवस्थाओं से मिलकर बनी है, जिनमें कभी भी कुछ भी होने की संभावना या आशंका रहती है। आशंका यह भी है कि कोई खतरनाक वायरस अचानक पैदा हो और सारे जीवन को नष्ट कर दे। स्टीफन हॉकिंग ने एक बार इस खतरे की भी बात की थी। यह भी डर है कि कभी कृत्रिम बुद्धिमत्ता से लैस मशीनें इंसान के काबू से बाहर हो जाएं। ये सारी आशंकाएं भी बेबुनियाद नहीं हैं। दुनिया और जीवन को सिर्फ भौतिकी के नियम या उनकी निश्चितता नहीं चलाती। हम लगातार अनिश्चितता और खतरों के बीच इसीलिए चलते जाते हैं, क्योंकि हमें जीवन के आधारभूत तत्व के बने रहने का भरोसा रहता है। व्यावहारिक जीवन में अगर किसी घटना के होने की संभावना एक निश्चित प्रतिशत से ज्यादा हुई, तभी हम उसके होने की संभावना पर विचार करते हैं। दुनिया में फिलहाल प्रदूषण से पैदा घातक बीमारियों के फैलने या परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का खतरा ज्यादा है। यहां तक कि सड़क दुर्घटना में मौत होने का खतरा हिग्स-बोसोन से दुनिया के नष्ट होने के खतरे से कहीं ज्यादा है। हॉकिंग का कथन दार्शनिक चिंतन के लिए एक आधार हो सकता है, फिलहाल हिग्स-बोसोन के खतरे से दुनिया को बचाने की फिक्र करना बेमानी है।

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